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मोहन भागवत

सरसंघचालक

(राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ)

विदर्भ के महान सपूत मोहनजी भागवत ने  अपनी ओजस्वी वाणी, मधुर व्यवहार, विव्दता प्रचुर, व्यवहार चातुर्य, अद्भुत संगठन शक्ति सम्पन्न व्यक्तित्व आदि गुणो से विदर्भ को संपूर्ण विश्व में गौरवान्वित किया है। उनका व्यक्तित्व युवा वर्ग के लिए प्रेरणादायी है।

पेशे से पशु चिकित्सक और वर्तमान समय में आरएसएस के सरसंघचालक मोहनजी भागवत का जन्म 11 सितम्बर, 1950 में महाराष्ट्र के छोटे से शहर चंद्रपुर में हुआ था। मोहन भागवत का वास्तविक नाम मोहनराव मधुकर राव भागवत है। इनका पूरा परिवार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ा हुआ था। मोहन भागवत के पिता मधुकर राव भागवत चंद्रपुर क्षेत्र के अध्यक्ष और गुजरात के प्रांत प्रचारक थे। मधुकर राव ने ही लालकृष्ण आडवाणी का आरएसएस से परिचय करवाया था। मोहन भागवत अपने भाई-बहनों में सबसे बड़े हैं। इनके छोटे भाई चंद्रपुर आरएसएस इकाई के अध्यक्ष भी हैं। team img
मोहन भागवत के दादा नारायण भागवत संघ के स्वयं सेवक थे और उनके पिता मधुकर राव भागवत भी राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के प्रचारक रहें है उन्होंने गुजरात में प्रांत प्रचारक के तौर पर भी काम किया था ,आम तौर पर संघ के प्रचारक शादी नहीं करते हैं लेकिन जब मधुकर राव भागवत ने शादी करने का फैसला किया तो वह वापस चंद्रपुर आ गए और चंद्रुपर क्षेत्र के कार्यवाह पद पर रहे. मोहन भागवत की मां मालती  बाई भी संघ की महिला शाखा सेविका समिति की सदस्य थी.

माननीय श्री मोहन भागवत ने चन्द्रपुर के लोकमान्य तिलक विद्यालय से अपनी स्कूली शिक्षा और जनता कॉलेज चन्द्रपुर से बीएससी प्रथम वर्ष की शिक्षा पूर्ण की। उन्होंने पंजाबराव कृषि विद्यापीठ, अकोला से पशु चिकित्सा और पशुपालन में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। 1975 के अन्त में, जब देश तत्कालीन प्रधानमन्त्री इंदिरा गान्धी द्वारा लगाए गए आपातकाल से जूझ रहा था, उसी समय वे पशु चिकित्सा में अपना स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम अधूरा छोड़कर संघ के पूर्णकालिक स्वयंसेवक बन गये।

आपात काल के दौरान भूमिगत कार्य करने के बाद भागवत 1977 में अकोला (महाराष्ट्र) में प्रचारक बन गए और बाद में उन्हें नागपुर और विदर्भ क्षेत्रों का प्रचारक बनाया गया। वर्ष 1991 में सारे देश में संघ कार्यकर्ताओं के शारीरिक प्रशिक्षण के लिए अखिल भारतीय शारीरिक प्रमुख बने और वे इस पद पर 1999 तक रहे।

अकोला में जिला प्रचारक रहे, फिर संघ की रचना में जिस तरह से प्रांतों का निर्माण किया है उसमें विदर्भ एक अलग प्रांत है. वे विदर्भ के प्रांत प्रचारक रहे. विदर्भ के प्रांत प्रचारक रहते हुए वे नागपुर के संघ मुख्यालय के संपर्क में लगातार बने रहे. विदर्भ के बाद वे बिहार के क्षेत्र प्रचारक रहे. 1987 में संघ की केन्द्रीय कार्यकारिणी में आ गये और अखिल भारतीय सह शारिरीक प्रमुख के बतौर काम करने लगे. केन्द्रीय कार्यकारिणी में उन्होंने 1991 से 1999 तक शारीरिक प्रमुख के रूप में काम किया फिर एक साल के लिए प्रचारक प्रमुख हुए. सन 2000 में जब सुदर्शन सरसंघचालक बने तो मोहनराव भागवत सरकार्यवाह बनाये गये. team img
2000 से 2009 तक वे तीन संघ के सरकार्यवाह बने रहे. आरएसएस की कार्यप्रणाली में दूसरे नंबर का कार्याधिकारी होता है. सरकार्यवाह रहते हुए मोहनराव भागवत आमतौर पर चुपचाप ही काम करते रहे और कभी संघ की सीमा के बाहर जाकर न तो मीडिया से बात की और न ही किसी प्रकार का कोई बयान दिया. संघ और उसके अनुसांगिक संगठनों के मंचों पर वे लगातार संघ को मजबूत करने के लिए बोलते और काम करते रहे. वर्ष 2009 में 21 मार्च को मोहन भागवत को सरसंघचालक का ओहदा दिया गया। संघ का प्रमुख बनने वाले वे युवा नेताओं में से एक हैं। उन्हें संघ का स्पष्ट भाषी, विनम्र और व्यवहारिक प्रमुख माना जाता है जोकि संघ को राजनीति से दूर रखने की एक स्पष्ट दूरदृष्टि रखते हैं। team img
मोहन भागवत को एक व्यावहारिक नेता के रूप में देखा जाता है। उन्होंने हिन्दुत्व के विचार को आधुनिकता के साथ आगे ले जाने की बात कही है। उन्होंने बदलते समय के साथ चलने पर बल दिया है। लेकिन इसके साथ ही संगठन का आधार समृद्ध और प्राचीन भारतीय मूल्यों में दृढ़ बनाए रखा है। वे कहते हैं कि इस प्रचलित धारणा के विपरीत कि संघ पुराने विचारों और मान्यताओं से चिपका रहता है, इसने आधुनिकीकरण को स्वीकार किया है और इसके साथ ही यह देश के लोगों को सही दिशा भी दे रहा है। team img

मोहन भागवत का दृष्टिकोण :


मोहन भागवत एक व्यवहारिक नेता हैं। वह आधुनिकता के साथ हिंदुत्व को अपनाने की पैरवी करते हैं। संघ की मूलभूत विशिष्टताओं को बरकरार रखते हुए मोहन भागवत समय के साथ बदलने में विश्वास रखते हैं। मोहन भागवत हिंदू धर्म और इसकी मान्यताओं का पूरा समर्थन करते हैं। लेकिन वह अस्पृश्यता के बड़े विरोधी हैं। उनका मानना है कि हिंदू धर्म अनेकता में एकता को अपने अंदर समाहित किए हुए है, यहां बिना किसी भेदभाव के सभी अनुयायियों को बराबर स्थान और सम्मान मिलना चाहिए। team img मोहनजी हिंदुत्व जीवन पद्धति  की भावना में विश्वास रखते है | ये पहलें और आज के समय में हमेशा आगे चलने पर बल देते है | इन्होने अनेकता में एकता पर बल दिया है | इन्होंने कहा है कि जातिवाद एवं समाजवाद का संघ में कोई जगह नहीं है | इनका कहना कि भारत एक हिन्दू राष्ट्र है और यहाँ हिन्दुस्तानियों का अधिकार रहना चाहिए | देश में हिन्दुत्व की भावना होनी चाहिए, यह भावना हर हिंदू के घर से होनी चाहिए | समाज में भेदभाव नहीं होना चाहिए | भारत माता के वीर स्वयंसेवकों के बलबूते पर इनका कहना है कि भारत को पुनः परम वैभव के शिखर पर स्थापित करना है जिससे पूरी दुनिया एक बार पुनः मुक्त कंठ से बोल उठे,भारत माता की जय !

राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ दुनिया का सबसे बड़ा संगठन है. जिससे करीब तीन दर्जन छोटे बडे संगठन जुड़े हुए हैं इन संगठनों का दायरा पूरे देश में फैला हुआ है. देश के सबसे बड़े ट्रेड यूनियन में से एक भारतीय मजदूर संघ, जिसके करीब दस लाख सदस्य हैं. देश का सबसे बडा विद्यार्थी संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और देश की रूलिंग पार्टी भारतीय जनता पार्टी जैसे संघ के कई और संगठन है. जिन्हें संघ परिवार कहा जाता है. संघ परिवार देश भर में शिक्षा, जनकल्याण और हिंदू धर्म से जुड़े कार्यक्रमों समेत कई क्षेत्रों में हजारों प्रोजेक्ट चला रहा है. और संघ परिवार के इन सारे कार्यक्रमों औऱ उद्देश्यों के लिए दिशा निर्देश देना और उनका वैचारिक मार्गदर्शन करने का काम राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के सरसंघचालक का होता है।
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